चीन ने हाल ही में खुलासा किया है कि उसने एक मच्छर जितना छोटा ड्रोन विकसित किया है,जिस की जासूसी ताकत किसी भी देश की सुरक्षा के लिए गंभीर चुनौती बन सकती है। यहाँ तक इन का उपयोग टार्गेट किलिंग जैसा खतरनाक भी हो सकता है जो अपने साइनाइड बुझे डंक को चुपचाप किसी भी शख्स के गर्दन,चेहरे हाथ या शरीर के किसी भी हिस्से में चुभो कर उसकी हत्या कर सकता है।
यह ड्रोन केवल 1.3 से 2 सेंटीमीटर लंबा, 3 सेंटीमीटर पंख फैलाव और मात्र 0.2-0.3 ग्राम वज़नी है।
इसे चीन के राष्ट्रीय रक्षा प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (NUDT), द्वारा विकसित किया गया है।
इस की बनावट और उड़ान असली मच्छर जैसी है— दो पत्तीनुमा पंख, पतला शरीर और तीन बाल जैसी टांगें। इस में अल्ट्रा स्मॉल कैमरा, माइक्रोफोन, सेंसर और कंट्रोल सर्किट लगे हैं, जो इसे बेहद गोपनीय निगरानी और इलेक्ट्रॉनिक सिग्नल कैप्चर में सक्षम बनाते हैं।
इसे स्मार्टफोन से भी ऑपरेट किया जा सकता है और न तो आंखों से दिखेगा, न ही कानों से सुना जाएगा। इस की सब से बड़ी ताकत है कि यह रडार से भी बच सकता है और खुफिया या सुरक्षित सरकारी परिसरों में भी घुस सकता है।
यह तकनीकी प्रगति ऐसे समय में सामने आई है जब विश्वभर में माइक्रो यूएवी विकास की होड़ तेज़ हो गई है। नॉर्वे की ब्लैक हॉर्नेट सीरीज़, जो पश्चिमी सेनाओं द्वारा व्यापक रूप से उपयोग की जाती है, हथेली के आकार के ड्रोन के रूप में बेहद प्रभावशाली टोही क्षमताएँ प्रदान करती है।
इसी तरह, अमेरिकी वायु सेना ने भी इसी तरह के माइक्रो-ड्रोन कार्यक्रमों के विकास की पुष्टि की है।
भारत के लिए यह ड्रोन रणनीतिक रूप से बड़ा खतरा बन सकता है, क्योंकि यह सीमावर्ती इलाकों, सैन्य ठिकानों या संवेदनशील सरकारी दफ्तरों में आसानी से घुस कर जासूसी कर सकता है, बातचीत सुन सकता है या इलेक्ट्रॉनिक डेटा चुरा सकता है।
ऐसे में भारत को अपनी डिफेंस, इलेक्ट्रॉनिक सर्विलांस और काउंटर-ड्रोन टेक्नोलॉजी को और मजबूत करना होगा।
जहां तक इस की रेंज और ऊर्जा का सवाल है, चीन ने इस ड्रोन की अधिकतम उड़ान रेंज का खुलासा नहीं किया है, लेकिन इसी श्रेणी के अन्य माइक्रो-ड्रोन लगभग 2 मील (3.2 किमी) तक उड़ सकते हैं।
चीन का ड्रोन बेहद छोटा है, इसलिए इस की रेंज सीमित हो सकती है, क्योंकि इस की बैटरी भी बहुत छोटी है। फिलहाल चीन ने इसके बैटरी के बारे में कोई भी खुलासा नहीं किया है, किन्तु इस ड्रोन में लिथियम आयन या अन्य माइक्रो बैटरी का उपयोग होने की संभावना है, जिससे इस की उड़ान समय आमतौर पर 15-30 मिनट तक ही सीमित रह सकती है।
लेकिन चीन और कुछ अन्य विकसित देशों में ड्रोन के लिये माइक्रो न्यूक्लियर बैटरियों —जैसे बेटावोल्टाइक बैटरियों—पर रिसर्च चल रही है। ये रेडियोधर्मी क्षय (radioactive decay) से बिजली बनाती हैं और कई सालों तक बिना रीचार्ज के काम कर सकती हैं।, जिस से उड़ान समय सालों के हिसाब से बढ़ सकता है। फिलहाल, यह ड्रोन चार्जेबल माइक्रो-बैटरी से चलता है।
इस तकनीक की माइक्रो न्यूक्लियर बैटरियां अभी भी उपयोग में हैं जो आमतौर पर मेडिकल इम्प्लांट्स, रिमोट सेंसर्स या स्पेस प्रोब्स में होता है, जहां बहुत कम बिजली (माइक्रोवॉट से मिलीवॉट) की जरूरत होती है।
मच्छर-आकार के ड्रोन के लिए समस्या यह है कि उड़ान और संचार के लिए अपेक्षाकृत ज्यादा पावर चाहिए, जबकि मौजूदा माइक्रो न्यूक्लियर बैटरियां इतनी पावर नहीं दे सकतीं। इस के अलावा, रेडिएशन शील्डिंग, गर्मी निकालना, सुरक्षा और पर्यावरणीय चिंता जैसी चुनौतियां भी हैं।
ऐसी माइक्रो न्यूक्लियर बैटरियों की क्षमता और सुरक्षा बढ़ाने पर ही शोध चल रहे हैं जो एक ना एक दिन बन ही जायेंगी।
भारत को भी माइक्रो-ड्रोन टेक्नोलॉजी, एंटी- माइक्रो-ड्रोन सिस्टम और इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर जल्द से जल्द विकसित करना होगा।
ऐसे ड्रोन की पहचान और निष्क्रियता के लिए नई रडार, लेजर और इलेक्ट्रॉनिक जैमिंग तकनीकों की आवश्यकता होगी।
कुल मिलाकर, चीन का मच्छर-आकार ड्रोन तकनीकी क्रांति का प्रतीक है, लेकिन भारत के लिए यह खतरे की घंटी भी है।
इस की सीमित बैटरी और कम उड़ान समय के बावजूद, इस की चुपके चुपके जासूसी करने की क्षमता अभूतपूर्व है, इसलिए भारत को अपनी सुरक्षा रणनीति को और आधुनिक बनाना अनिवार्य हो गया है।